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कहा खो गई थी तुम Short Romantic Love Stories In Hindi

कहा खो गई थी तुम  Short Romantic Love Stories In Hindi गाँव में कॉलेज नही था इस कारण पढ़ने के लिए में शहर आया था । यह किसी रिश्तेदार का एक कमरे का मकान था! बिना किराए का था,  आस-पास सब गरीब लोगो के घर थे। और में अकेला था सब काम मुजे खुद ही करने पड़ते थे।  खाना-बनाना, कपड़े धोना, घर की साफ़-सफाई करना। कुछ दिन बाद एक गरीब लडकी अपने छोटे भाई के साथ मेरे घर पर आई। आते ही सवाल किय " तुम मेरे भाई को ट्यूशन करा सकते हो कयां?" मेंने कुछ देर सोचा फीर कहा "नही" उसने कहा "क्यूँ? मेने कहा "टाइम नही है। मेरी पढ़ाई डिस्टर्ब होगी।" उसने कहा "बदले में मैं तुम्हारा खाना बना दूँगी।" शायद उसे पता था की में खाना खुद पकाता हुँ मैंने कोई जवाब नही दिया तो वह और लालच दे कर बोली:- "बर्तन भी साफ़ कर दूंगी।" अब मुझे भी लालच आ ही गया: मेने कहा- "कपड़े भी धो दो तो पढ़ा दूँगा।" वो मान गई। इस तरह से उसका रोज घर में आना-जाना होने लगा। वो काम करती रहती और मैं उसके भाई को पढ़ा रहा होता। ज्यादा बात नही होती।   उसका भाई 8वीं कक्षा में था। खूब होशियार था। इस

True Love Story - अनकही अनसुनी दिल को छू जाने वाली लव स्टोरी

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True Love Story - अनकही अनसुनी दिल को छू जाने वाली लव स्टोरी

साथियों नमस्कार , आज के इस अंक में हम आपके लिए लेकर  आएं हैं एक ऐसी कहानी  “Muskurahat | True Love Story” जो आपको प्रेम के सागर में गोटें लगाने को मजबूर कर देगी

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कुछ ऐसे ही किस्से कहानियों से रूबरू कराती हमारी आज की यह कहानी - let's begin

यह कहानी शुरू होती हैं एक अजनबी लड़की से जो ट्रैन में बैठी सफ़र कर अपने घर जा रही होती हैं , लगभग आधे घंटे बाद टीटी ने उसको उठाया और पुछा, “कहाँ जाना है बेटी”

अंकल, दिल्ली तक जाना है (उसने घबराहट और मासूमियत भरे लहजे में कहा)
टिकट है…(टीटी ने पुछा)

हाँ अंकल, जनरल का है…लैकिन वहां चढ़ नहीं पाई इसलिए यहाँ आकर बैठ गई!
ठीक है बेटा, लेकिन 300 रुपाए पेनाल्टी लगेगी (टीटी ने कहा)

लेकिन अंकल मेरे पास तो 100 रूपए ही हें…(लड़की की आँखे अब थोड़ी सी भीग चुकी थी)
ये तो गलत बात है बेटा, पेनाल्टी तो भरना ही पड़ेगी…(टीटी ने कहा)

सॉरी अंकल, में अलगे स्टेशन पर जनरल डिब्बे में चली जाउंगी…मेरे पास सच में 100 रूपए ही है, कुछ परेशानी आ गई इसलिए जल्दबाजी में घर से निकल आई और ज्यादा पैसे रखना भूल गई (बोलते-बोलते वह रोने लगी)

टीटी को उस पर दया आ गई और उसने 100 रूपए का चालान बनाकर उसे दिल्ली तक के सफ़र की अनुमति दे दी

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टीटी के जाते ही उसने आसूं पोंछें और इधर-उधर देखा, कि कहीं कोई उसे देख कर हंस तो नहीं रहा| फिर उसने अपने बेग से मोबाइल निकला और किसी को फोन किया कि ज़ल्दबाज़ी में वह पैसे रखना भूल गई और अब उसके पास बिल्कुल पैसे नहीं है…कैसे भी करके दिल्ली स्टेशन पर उसे कुछ पैसे भिजवा दे नहीं तो वह समय पर गाँव नहीं पहुँच पाएगी|

इतना सबकुछ सुनने और समझने के बाद मेरे मन में एक ही बात बार-बार आ रही थी, कि हो ना हो यह लड़की किसी ना किसी मुसीबत में जरुर है| ना जाने क्यों उसकी मासूमियत देखकर में उसकी और खीचा चला जा रहा था|

मन कर रहा था, कि उसके पास जाकर इंसानियत के नाते उसकी मदद करू और कहूँ की तुम परेशान मत हो और रो मत…लेकिन एक अजनबी के लिए इस तरह से सोचना और उसके पास जाकर उससे बात करना भी अजीब था|

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उसके चहरे से एसा लग रहा था जैसे उसने सुबह से कुछ खाया पिया भी ना हो और अब तो उसके पास पैसे भी नहीं थे| इतना सोचकर मेरे मन में फिर से विचारों का उथल-पुथल शुरू हो गया था।

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बहुत देर तक उसे इस तरह परेशानी में देखने के बाद में कुछ उपाय सोचने लगा जिस से उसकी मदद भी कर पाऊँ और उसकी पहचान में भी ना आऊ!

बहुत देर तक सोचने के बाद, जिस नॉवेल को में पढ़ रहा था उसके आखरी पन्ने पर मेने लिखा “बहुत देर तक तुम्हें परेशानी में देख रहा हूँ, पैसे ना होने की बात जो तुमने फोन पर किसी को बताई वह भी मेने सुनी|

में जनता हूँ की किसी अजनबी तो इस तरह पैसे भेजना अजीब है और शायद तुम्हारी नज़र में गलत भी होगा| लेकिन तुम्हें इस तरह परेशान देखकर मुझे बैचेनी हो रही है, इसलिए इस किताब के साथ 800 रुपाए तुम्हें भेज रहा हूँ|

तुम्हें कोई अहसान ना लगे इसलिए निचे अपना एड्रेस भी लिख रहा हूँ! जब तुम्हें सही लगे तुम मुझे यह पैसे वापस भी भेज सकती हो वैसे में नहीं चाहूँगा की तुम मुझे यह पैसे वापस करो| “एक अजनबी हमसफ़र”

एक चाय वाले के हाथों मेने वह किताब उस लड़की को देने को कहा और चाय वाले को उस लड़की को मेरे बारे में बताने को मना किया| किताब और उसमें रखे पैसे मिलते ही लड़की ने मुड़कर इधर उधर देखा लेकिन तब तक में अपनी बर्थ पर कम्बल ओढ़ कर सो गया था| उसे ट्रेन के उस डिब्बे की भीड़ में कोई भी नहीं दिखा जो उसकी और देख रहा हो।

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थोड़ी देर बाद कम्बल का एक कोना थोडा सा हटाकर मैंने उसकी और देखा, पैसे पाकर अब उसके चहरे पर एक चमक आ चुकी थी और सुर्ख पड़े होटों पर एक मुस्कराहट थी| उस दिन उसकी वह मुस्कराहट देखकर ऐसा लगा जैसे कई सालों से मुझे बस इसी मुस्कराहट का इंतज़ार था|

उसके चहरे की मुस्कराहट ने मेरे दिल उसके हाथों में थमा दिया| थोड़ी-थोड़ी देर में, में चादर का कोना हटा कर उसकी और देखकर में सांसे ले रहा था| पता ही नहीं चला कब मेरी आँख लग गई|

जब नींद से जगा तब तक दिल्ली स्टेशन आ चूका था| मैंने उस सिट की तरफ देखा तो वह लड़की जा चुकी थी लेकिन सिट पर वही कागज पड़ा था जिस पर मैंने कुछ लिखा था| मैंने जल्दी से उतरकर वह कागज़ उठा लिया|

कागज़ की दूसरी और उसने लिखा था….
Thank You,

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मेरे अजनबी हमसफ़र…आपका यह अहसान में ज़िन्दगी भर नहीं भूलूंगी| मेरी माँ आज मुझे छोड़कर चली गई है, घर में मेरे अलावा कोई भी नहीं है इसलिए आनन-फानन में घर जा रही हूँ….आज आपके दिए इन पैसों से में अपनी माँ को शमशान जाने से पहले एक बार देख पाऊँगी।

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बीमारी की वजह से माँ को ज्यादा वक़्त तक घर में भी नहीं रखा जा सकता आज आपकी वजह से में सही वक़्त पर घर पहुँच पाऊँगी|आज से में आपकी कर्जदार हूँ, जल्द ही आपके पैसे लोटा दूंगी|

उस दिन से उसकी वह नम आँखे और मुस्कराहट मेरे जीने की वजह बन गई…..हर रोज़ पोस्टमेन का इंतजार करता और उससे पूछता शायद किसी दिन उसका कोई ख़त आ जाए!

आज दो साल बाद एक ख़त मिला, लिखा था “आपका कर्ज में अदा करना चाहती हूँ, लेकिन ख़त के ज़रिए नहीं….आपसे मिलकर! निचे मिलने की जगह का पता लिखा था और आखिर में लिखा था….“तुम्हारी अजनबी हमसफ़र…..”

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आशा करता हूं कि मेरी यह स्टोरी अच्छी लगी होगी आपलोग

Written By –✍ @Aryan-Rani❤️😘

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